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    Sunday 5 March 2017

    #उम्मीदें

    Image result for person in thought "शिकायतों का मसला, यूं तो उम्मीदों से होता है, वो बात और है कि इन्सान, उम्मीदें क्यों रखता है ?"

    कहीं न कहीं मन में उम्मीदों के पूरा न होने की कसक रह जाती है, पर इसमें शिकायत करने जैसी आफ़त मोल लेने का भी अपना ही मज़ा है I पहले तो ख़ुद के बारे में विचार करो, फिर अपने सपनों के बारे में सोचते हुए उनके साकार न होने का ग़म मनाओ, फिर जब कुछ और न सूझे, तो शिकायतें करो I शिकायत करना भी कोई आसन सा काम नहीं है , क्योंकि इसके लिए भी तो किसी की ज़रूरत होती ही है न ? लो फिर एक नया मसला, कि आख़िर शिकायत करें भी तो किससे ? चलिए मान लिया कि कोई मिल भी गया I अब आयी बारी अगले मसले की I और वो ये, कि आख़िर कोई आपकी सुनेगा, भी तो क्यों ? किसी ने सुन भी ली तो क्या करेगा वो ? क्योंकि ज़िंदगी आपकी, जीने का तरीका आपका, उसूल आपके, दिल आपका, दिमाग आपका  I जो भी किया आपने किया या नहीं भी किया, तो आपने नहीं  किया I सफल हुए तो आप और असफल हुए तो भी आप क्योंकि सपने और प्रयास दोनों ही आपके हैं, किसी और के नहीं I तो फिर शिकायत किसी और से क्यों ? इतनी दिमाग़ी मशक्कत का कोई अर्थ ही नहीं I उम्मीदें ख़ुद से रखनी चाहिए कम से कम कोई शिकायत ख़ुद से तो न होगी I 

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