आख़िर ऐसा क्यों ?
जब भी किसी बेअकल की बात होती है, तो उसकी तुलना अमूमन भैंस से ही की जाती है I जैसे बेअकल को जितना भी समझाओ वो सब ज्ञान पा कर भी, अपने मन की ही करता है, यानि कि फिर बेवकूफ़ी I ऐसा ही हाल होता है इन भैंसों का भी, इनके आगे कुछ भी कहो कोई अर्थ नहीं I बीन भी बजती रहे तो भी ये, अपनी ही धुन में पागुर करती रहती हैं I भई बमुश्किल, इंसानी ज़िन्दगी पाकर, कम से कम हमें तो भैंस की राह, नहीं पकड़नी चाहिए I
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