कई सारी डोरों से बंधे हम और आप कभी हंसते-रोते तो कभी गुनगुनाते अपने सफ़र
पर मुसाफिरी करते हुये जो ठहरे तो बस खुल जाता है यादों का पिटारा I आँख मिचोली सी
करते कुछ अहसास और कुछ हकीकतों की अठखेलियाँ लबों पर मुस्कराहट बिखेरती हैं I
धुंधली सी हो चली यादें फिर मन को आस बंधाती हैं कि डोर को कस कर फिर अपनों को
अपनी ओर खींच लें I सच ही तो है रिश्ते भी पतंगबाज़ी के उसूलों पर ही चलते हैं कभी
कसाव तो कभी ढील और कभी खींच-तान I यूँ तो मज़ा भी इसी ज़िंदगी में है और कभी किसी
वक़्त वही सज़ा भी लगती है I
रिश्तों का ताना-बाना हमें खुद में ही कहीं
जिंदा सा रखता है I ये एहसास तन्हा रह कर ही हो सकता है कि रिश्तों के बिना ज़िंदगी
बेमायने है I रिश्ता चाहे जो भी हो हमसे हमेशा ये आस रखता है कि उसे एक नवजात की
तरह तवज्जोह मिले I वो बात और है कि हम इस बात का कितना ख़याल रखते हैं I मिट॒टी,
पानी और खाद के बिना तो बीज भी अंकुरित नहीं हो सकता फिर तो ये जीते-जागते पेचीदा
से लोगों का मसला है I पेचीदा इसलिये कि हर इंसान के जज़्बात-ख़यालात एक दूसरे से
अलग हैं फिर भी इन अलग-अलग से लोगों को बांधे रखने की ताक़त का नाम है रिश्ता ITuesday 7 March 2017
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