# कविताएँ #
एक नन्ही उगंली को थामे
एक नई उम्मीद को बाँधे
तय करने एक नया सफर
लगे सोच मे पंछी से पर
नन्ही आँखों के वो सपने
जा ने क्यों लगते हैं अपने
अंबर भी जिनसे बौना
सूरज जैसे एक खिलौना
सागर की लहरों सा वेग
पर्वत की चोटी या मेघ
नहीं असंभव कोई भी लक्ष्य
नन्हीं उन आशाओं के समक्ष
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